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अचानक रुख़ बदलती जा रही है | शाही शायरी
achanak ruKH badalti ja rahi hai

ग़ज़ल

अचानक रुख़ बदलती जा रही है

ख़ुर्शीद रिज़वी

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अचानक रुख़ बदलती जा रही है
ज़मीं मेहवर से टलती जा रही है

सितारे सुर्ख़ होते जा रहे हैं
हर इक तक़दीर जलती जा रही है

न जाने ये हयात-ए-हर्ज़ा-पैमा
कहाँ गिरती-सँभलती जा रही है

परिंदे आशियानों को रवाँ हैं
मुसलसल शाम ढलती जा रही है

मिरे बा'द अब मिरी ख़ाक-ए-लहद में
मिरी ज़ंजीर गलती जा रही है