अचानक रुख़ बदलती जा रही है
ज़मीं मेहवर से टलती जा रही है
सितारे सुर्ख़ होते जा रहे हैं
हर इक तक़दीर जलती जा रही है
न जाने ये हयात-ए-हर्ज़ा-पैमा
कहाँ गिरती-सँभलती जा रही है
परिंदे आशियानों को रवाँ हैं
मुसलसल शाम ढलती जा रही है
मिरे बा'द अब मिरी ख़ाक-ए-लहद में
मिरी ज़ंजीर गलती जा रही है
ग़ज़ल
अचानक रुख़ बदलती जा रही है
ख़ुर्शीद रिज़वी