अबरू तो दिखा दीजिए शमशीर से पहले
तक़्सीर तो कुछ हो मिरी ताज़ीर से पहले
मालूम हुआ अब मिरी क़िस्मत में नहीं तुम
मिलना था मुझे कातिब-ए-तक़दीर से पहले
ऐ दस्त-ए-जुनूँ तोड़ न दरवाज़ा-ए-ज़िंदाँ
मैं पूछ तो लूँ पाँव की ज़ंजीर से पहले
अच्छा हुआ आख़िर मिरी क़िस्मत में सितम थे
तुम मिल गए मुझ को फ़लक-ए-पीर से पहले
बैठे रहो ऐसी भी मुसव्विर से हया क्या
काहे को खिंचे जाते हो तस्वीर से पहले
देखो तो 'क़मर' उन को बुला कर शब-ए-वादा
तक़दीर पे बरहम न हो तदबीर से पहले
ग़ज़ल
अबरू तो दिखा दीजिए शमशीर से पहले
क़मर जलालवी