अबरू है का'बा आज से ये नाम रख दिया
हम ने उठा के ताक़ पे इस्लाम रख दिया
नश्शे में जा गिरा जो मैं मस्जिद में सर के बल
ज़ाहिद ने मुझ पे सज्दे का इल्ज़ाम रख दिया
झिचका वो ख़ौफ़ खा के तो मैं ने तड़प के ख़ुद
बर्छी की नोक पर दिल-ए-नाकाम रख दिया
दिलचस्प नाम सुन के लगे माँगने हसीं
किस ने ज़रा से ख़ून का दिल नाम रख दिया
इतनी तो उस ने की मिरी दिल-सोज़ियों की क़द्र
तुर्बत पे इक चराग़ सर-ए-शाम रख दिया
जूड़ा जो बंध गया तो नए दिल कहाँ फँसें
तू ने इधर लपेट के क्यूँ दाम रख दिया
आँख इस अदा से उस ने दिखाई कि मैं ने 'शौक़'
चुपके से अपना मय का भरा जाम रख दिया
ग़ज़ल
अबरू है का'बा आज से ये नाम रख दिया
शौक़ क़िदवाई