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अब्र उतरा है चार-सू देखो | शाही शायरी
abr utra hai chaar-su dekho

ग़ज़ल

अब्र उतरा है चार-सू देखो

सादुल्लाह शाह

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अब्र उतरा है चार-सू देखो
अब वो निखरेगा ख़ूब-रू देखो

सुर्ख़ ईंटों पे नाचती बारिश
और यादें हैं रू-ब-रू देखो

ऐसे मौसम में भीगते रहना
एक शायर की आरज़ू देखो

वो जो ज़ीना-ब-ज़ीना उतरा है
अक्स मेरा है हू-ब-हू देखो

अपनी सोचें सफ़र में रहती हैं
उस को पाने की जुस्तुजू देखो

दिल की दुनिया है दूसरी दुनिया
ऐसे मंज़र को बा-वज़ू देखो

इक सुकूँ है अगरचे बस्ती में
'साद' अंदर की हाव-हू देखो