अब्र उतरा है चार-सू देखो
अब वो निखरेगा ख़ूब-रू देखो
सुर्ख़ ईंटों पे नाचती बारिश
और यादें हैं रू-ब-रू देखो
ऐसे मौसम में भीगते रहना
एक शायर की आरज़ू देखो
वो जो ज़ीना-ब-ज़ीना उतरा है
अक्स मेरा है हू-ब-हू देखो
अपनी सोचें सफ़र में रहती हैं
उस को पाने की जुस्तुजू देखो
दिल की दुनिया है दूसरी दुनिया
ऐसे मंज़र को बा-वज़ू देखो
इक सुकूँ है अगरचे बस्ती में
'साद' अंदर की हाव-हू देखो
ग़ज़ल
अब्र उतरा है चार-सू देखो
सादुल्लाह शाह