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अब्र सहरा-ए-जाँ तलाश करे | शाही शायरी
abr sahra-e-jaan talash kare

ग़ज़ल

अब्र सहरा-ए-जाँ तलाश करे

निसार तुराबी

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अब्र सहरा-ए-जाँ तलाश करे
प्यास अपना जहाँ तलाश करे

हर अक़ीदत की एक मंज़िल है
हर जबीं आस्ताँ तलाश करे

अपने महवर पे रह नहीं सकती
जो ज़मीं आसमाँ तलाश करे

इश्क़ ढूँडे कहानियाँ अपनी
हुस्न अपना बयाँ तलाश करे

कोई तो रास्तों प निकले भी
कोई तो कारवाँ तलाश करे

क्या हक़ीक़त पे चल गया अफ़्सूँ
क्या यक़ीं भी गुमाँ तलाश करे

क्या सितारों से जा मिलीं आँखें
क्या नज़र कहकशाँ तलाश करे

किस को किरदार की तमन्ना है
कौन अब दास्ताँ तलाश करे

जाओ कह दो 'निसार' जा के उसे
हम सा इक मेहरबाँ तलाश करे