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अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ | शाही शायरी
abr ka TukDa koi baala-e-baam aata hua

ग़ज़ल

अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ

शोएब निज़ाम

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अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ
मेरे घर भी सब्ज़ मौसम का पयाम आता हुआ

धूप की बुझती तमाज़त की सिपर लेता चलूँ
फिर उफ़ुक़ से धीरे धीरे वक़्त-ए-शाम आता हुआ

फिर दर-ए-दिल पर हुई हैं रौशनी की दस्तकें
फिर सितारा सा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ

एक मुबहम सा तसव्वुर एक बे-चेहरा सा नाम
मेरी तन्हाई में अक्सर मेरे काम आता हुआ

कोई क़तरे में समुंदर देख कर सैराब है
कोई दरिया से मुसलसल तिश्ना-काम आता हुआ