अब्र छाएगा तो बरसात भी हो जाएगी
दीद होगी तो मुलाक़ात भी हो जाएगी
ऐ दिल-हुस्न-ए-तलब मश्क़-ए-तसव्वुर तू बढ़ा
फिर जो चाहेगा वही बात भी हो जाएगी
सर झुकाए हुए बैठे हो अबस बादा-कशो
जाम उठाओगे तो बरसात भी हो जाएगी
आज उस ने नए अंदाज़ से देखा है मुझे
ग़ालिबन आज कोई बात भी हो जाएगी
बे-ख़ुदी सिर्फ़ दलील-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ ही नहीं
एक दिन काशिफ़-ए-हालात भी हो जाएगी
बुल-हवस दहर के रंगीन मनाज़िर से न खेल
दिन हुआ है तो यहाँ रात भी हो जाएगी
जान दे कर तिरी महफ़िल में कभी जान-'अज़ीज़'
जौर की तेरे मुकाफ़ात भी हो जाएगी
ग़ज़ल
अब्र छाएगा तो बरसात भी हो जाएगी
अज़ीज़ वारसी