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अब्र बरसा है न जाने किस लिए | शाही शायरी
abr barsa hai na jaane kis liye

ग़ज़ल

अब्र बरसा है न जाने किस लिए

मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां

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अब्र बरसा है न जाने किस लिए
फूल महका है न जाने किस लिए

रह-रवान-ए-शौक़ रुख़्सत हो गए
चाँद निकला है न जाने किस लिए

जब तुम्हारी आरज़ू बाक़ी नहीं
दिल धड़कता है न जाने किस लिए

इस क़दर शिद्दत नहीं थी तंज़ में
घाव गहरा है न जाने किस लिए

क्या कहें कैफ़िय्यत-ए-'तनवीर' हम
शेर कहता है न जाने किस लिए