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अभी तक उस को मिरा इंतिज़ार है शायद | शाही शायरी
abhi tak usko mera intizar hai shayad

ग़ज़ल

अभी तक उस को मिरा इंतिज़ार है शायद

प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’

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अभी तक उस को मिरा इंतिज़ार है शायद
मिरी नज़र पे बहुत ए'तिबार है शायद

लिबास ऐसा मैं पहले कभी नहीं देखा
किसी के सोग में अब के बहार है शायद

वो देख कर मुझे मिस्ल-ए-गुलाब खिलता है
कि दिल ही दिल में उसे मुझ से प्यार है शायद

कई दिलों का मुक़द्दर अज़ाब होता है
हमारा दिल भी उन्हीं में शुमार है शायद

निगाह-ए-नाज़ का नश्शा कभी का टूट चुका
बस अब तो आँखों में उस का ख़ुमार है शायद

वो बात बात पे अपनी मिसाल देता है
कुछ अपने आप पे कम ए'तिबार है शायद

तने पे जिस के तराशे थे हम ने नाम कभी
'ख़याल' कीजे यही वो चिनार है शायद