अभी से मत कहो दिल का ख़लल जावे तो बेहतर है
ये राह-ए-इश्क़ है यहाँ दम निकल जावे तो बेहतर है
लहू आँखों से बदले अश्क के तो हो गया जारी
रही है जान बाक़ी ये भी गल जावे तो बेहतर है
शिकस्ता दिल का तो अहवाल पहुँचे ऐ 'सुरूर' उस तक
ये शीशा ताक़-ए-उल्फ़त से फिसल जावे तो बेहतर है
ग़ज़ल
अभी से मत कहो दिल का ख़लल जावे तो बेहतर है
रजब अली बेग सुरूर