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अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या | शाही शायरी
abhi se aa gain nam-e-KHuda hain shoKHiyan kya-kya

ग़ज़ल

अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या

ज़हीर देहलवी

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अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या
मिरी तक़दीर बन बन कर बदलती है ज़बाँ क्या-क्या

मुझे गर्दिश में रखती है निगाह-ए-दिल-सिताँ क्या-क्या
मिरी क़िस्मत दिखाती है मुझे नैरंगियाँ क्या-क्या

निगाहों में हया है और हया में है निहाँ क्या-क्या
तबीअत में बसी हैं ख़ैर से रंगीनियाँ क्या-क्या

फ़क़त इक सादगी पर शोख़ियों के हैं गुमाँ क्या-क्या
अदा-ए-ख़ामुशी में भर दिया रंग-ए-बयाँ क्या-क्या

दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-हसरत ने क्या कुछ गुल खिलाए हैं
बहार-आगीं है कुछ अब की बरस फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ क्या-क्या

निगाहें बद-गुमानी से कहाँ जा-जा के लड़ती हैं
मिरी आँखों में हैं दुश्मन की बज़्म-आराईयाँ क्या-क्या

तसव्वुर में विसाल-ए-यार के सामान होते हैं
हमें भी याद हैं हसरत की बज़्म-आराईयाँ क्या-क्या

अभी से बन गई मुश्किल अभी तो दूर है मंज़िल
मुझे रुस्वा करेंगी देखिए बेताबियाँ क्या-क्या

वो जितने दूर खिंचते हैं तअल्लुक़ और बढ़ता है
नज़र से वो जो पिन्हाँ हैं तो दिल में हैं अयाँ क्या-क्या