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अभी न जाओ अभी रास्ते सजे भी नहीं | शाही शायरी
abhi na jao abhi raste saje bhi nahin

ग़ज़ल

अभी न जाओ अभी रास्ते सजे भी नहीं

हनीफ़ असअदी

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अभी न जाओ अभी रास्ते सजे भी नहीं
अभी चराग़ सर-ए-कहकशाँ जले भी नहीं

जबीन-ए-चर्ख़ पे गुलगून-ए-शफ़क़ मल कर
अभी तो शाम के साए कहीं गए भी नहीं

अभी अभी तो जमाई है मैं ने बज़्म-ए-ख़याल
अभी उफ़ुक़-ब-उफ़ुक़ बाम-ओ-दर सजे भी नहीं

उरूस-ए-शब ने अभी चाँदनी उतारी है
अभी तो गेसु-ए-शब ठीक से खुले भी नहीं

अभी से तर्क-ए-तअल्लुक़ के मशवरे तो न दो
अभी तो यादों के सारे दिए बुझे भी नहीं

मिरे सफ़र में सितारे थे बस शरीक-ए-सफ़र
ये राह-रौ तो मिरी रह-गुज़र के थे भी नहीं