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अभी मौजूद थी लेकिन अभी गुम हो गई है | शाही शायरी
abhi maujud thi lekin abhi gum ho gai hai

ग़ज़ल

अभी मौजूद थी लेकिन अभी गुम हो गई है

सलीम फ़राज़

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अभी मौजूद थी लेकिन अभी गुम हो गई है
न जाने किस जहाँ में ज़िंदगी गुम हो गई है

मिरे हमराह क्यूँ वो शख़्स चलना चाहता है
सफ़र के जोश में क्या आगही गुम हो गई है

सभी ख़ुश हैं कि सारे गुम-शुदा फिर मिल गए हैं
मुझे ग़म है कि अब तेरी कमी गुम हो गई है

मिरे होंटों को दरिया ने किया सैराब लेकिन
हयात-अफ़रोज़ दिल की तिश्नगी गुम हो गई है

मैं उस से मुद्दतों के बा'द दोबारा दोबारा मिला हूँ
ख़ुशी तो है मगर वारफ़्तगी गुम हो गई है

ये किन तिश्ना-लबों की फ़ौज गुज़री है इधर से
कहीं कुछ कम कहीं पूरी नदी गुम हो गई है

हमेशा जो मुझे इज़्न-ए-सुख़न देती रही थी
हुजूम-ए-शोर में वो ख़ामुशी गुम हो गई है

मैं उस की याद से बस एक पल को गुम हुआ था
मगर लगता है जैसे इक सदी गुम हो गई है

ब-तौर-ए-रस्म ही कार-ए-जुनूँ बाक़ी है मुझ में
वगर्ना दश्त से वाबस्तगी गुम हो गई है

'सलीम' उस में ज़ियादा फ़र्क़ तो अब भी नहीं है
बस इतना है कि थोड़ी सादगी गुम हो गई है