अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है
मोहब्बत का जुनूँ कामिल नहीं है
ज़माने से मोहब्बत का अभी तक
ये हासिल है कि कुछ हासिल नहीं है
न आँखें फोड़ इस दश्त-ए-जुनूँ में
ये राह-ए-नाक़ा-ए-महमिल नहीं है
ज़मीं पर बैठ जा ऐ शैख़ तू भी
ये बज़्म-ए-मय तिरी महफ़िल नहीं है
तबीबों से कहो घर लौट जाएँ
ये दर्द-ए-दिल वो दर्द-ए-दिल नहीं है
हमीं 'अख़लाक़' उस से बे-ख़बर हैं
किसी पल हम से वो ग़ाफ़िल नहीं है
ग़ज़ल
अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है
अख़लाक़ बन्दवी