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अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है | शाही शायरी
abhi ashkon mein KHun shamil nahin hai

ग़ज़ल

अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है

अख़लाक़ बन्दवी

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अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है
मोहब्बत का जुनूँ कामिल नहीं है

ज़माने से मोहब्बत का अभी तक
ये हासिल है कि कुछ हासिल नहीं है

न आँखें फोड़ इस दश्त-ए-जुनूँ में
ये राह-ए-नाक़ा-ए-महमिल नहीं है

ज़मीं पर बैठ जा ऐ शैख़ तू भी
ये बज़्म-ए-मय तिरी महफ़िल नहीं है

तबीबों से कहो घर लौट जाएँ
ये दर्द-ए-दिल वो दर्द-ए-दिल नहीं है

हमीं 'अख़लाक़' उस से बे-ख़बर हैं
किसी पल हम से वो ग़ाफ़िल नहीं है