अभी अभी जो फ़लक पार से गुज़ारे गए
तुम्हारी आँख से ऐसे कई सितारे गए
तुम्हारे होंट से निकले हर एक लफ़्ज़ की ख़ैर
कि जैसे उन पे गुलाबों के फूल वारे गए
किसी ने नींद में आ कर नहीं छुआ हम को
ये बाल ख़्वाब में रह कर नहीं सँवारे गए
पहल पहल तो वो होंटों से देखे जाते रहे
फिर उस के बा'द मिरी आँख से पुकारे गए
तिरे विसाल की ख़्वाहिश कहीं पे रक्खी गई
तिरे विसाल के अर्से कहीं गुज़ारे गए
मगर वो लहर हमारी तरफ़ नहीं पल्टी
अगरचे ध्यान बहुत उस तरफ़ हमारे गए
तुम्हारे जाने से कुछ ख़ास तो नहीं हुआ बस
चराग़ रक्खे गए आईने उतारे गए

ग़ज़ल
अभी अभी जो फ़लक पार से गुज़ारे गए
वसीम ताशिफ़