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अब ये आलम है कि जिस शय पे नज़र जाती है | शाही शायरी
ab ye aalam hai ki jis shai pe nazar jati hai

ग़ज़ल

अब ये आलम है कि जिस शय पे नज़र जाती है

रईस नियाज़ी

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अब ये आलम है कि जिस शय पे नज़र जाती है
हू-ब-हू आप की तस्वीर नज़र आती है

ख़ुद को तारीख़ किसी वक़्त जो दोहराती है
मेरे हालात पे दुनिया को हँसा जाती है

याद-ए-अय्याम-ए-बहाराँ भी नहीं वज्ह-ए-सुकूँ
अब तो तज़ईन-ए-क़फ़स ही मुझे बहलाती है

बर्क़ बन बन के गिरी है मिरे दिल पर अक्सर
वो तजल्ली जो सर-ए-तूर नज़र आती है

आज कुछ उन की तवज्जोह में कमी पाता हूँ
ज़िंदगी मौत से दो-चार हुई जाती है

दिल भर आता है मिरा देख के नम आँख कोई
अपने रोने पे तो अब मुझ को हँसी आती है

मैं वो इक नंग-ए-ज़माना हूँ अज़ल ही से 'रईस'
ज़िंदगी है कि मिरे नाम से शरमाती है