EN اردو
अब वो सौदा नहीं दीवानों में | शाही शायरी
ab wo sauda nahin diwanon mein

ग़ज़ल

अब वो सौदा नहीं दीवानों में

सैफ़ुद्दीन सैफ़

;

अब वो सौदा नहीं दीवानों में
ख़ाक उड़ती है बयाबानों में

ग़म-ए-दौराँ को गिला है मुझ से
तू ही तू है मिरे अफ़्सानों में

दिल-ए-नादाँ तिरी हालत क्या है
तू न अपनों में न बेगानों में

बुझ गई शम्अ सहर से पहले
आग जलती रही परवानों में

दिल ने छोड़ा न उमीदों का ख़याल
फूल खिलते रहे वीरानों में

'सैफ़' पहलू में ये आहट ग़म की
कौन रोता है बयाबानों में