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अब वो जो नहीं उन की तमन्ना भी बहुत है | शाही शायरी
ab wo jo nahin unki tamanna bhi bahut hai

ग़ज़ल

अब वो जो नहीं उन की तमन्ना भी बहुत है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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अब वो जो नहीं उन की तमन्ना भी बहुत है
जीने के लिए शोरिश-ए-दुनिया भी बहुत है

अब सर्द-हवा शो'ला-ए-जाँ सोज़-ए-जुनूँ भी
अब गर्मी-ए-हुस्न-ए-रुख़-ए-ज़ेबा भी बहुत है

ख़ुश-क़ामती-ए-सर्व का चर्चा है ग़नीमत
अब तज़किरा-ए-नर्गिस-ओ-लाला भी बहुत है

तुम कौन से थे ऐसे सज़ा-वार-ए-इनायत
वो पूछ रहे हैं तुम्हें इतना भी बहुत है

या तल्ख़ी-ए-मय ही थी जवाब-ए-ग़म-ए-दुनिया
या ज़िक्र-ए-मय-ओ-साग़र-ओ-मीना भी बहुत है

या गर्दिश-ए-दौराँ को भी ख़ातिर में न लाते
या अब किसी उम्मीद पे जीना भी बहुत है