अब वहाँ चल कर रहें ऐ दिल जहाँ कोई न हो
हम हों और वो हों हमारे दरमियाँ कोई न हो
इश्क़ है वो इश्क़ रुस्वाई हो जिस के साथ साथ
इश्क़ वो क्या इश्क़ जिस की दास्ताँ कोई न हो
मैं भी दिल वालों की बर्बादी से वाक़िफ़ हूँ मगर
मेरी सूरत यूसुफ़-ए-बे-कारवाँ कोई न हो
मेहरबाँ हो जाए इक आलम हमारे हाल पर
आप जैसा दुश्मन-ए-दिल मेहरबाँ कोई न हो
आप भी हर शख़्स को समझें अगर अपना 'अज़ीज़'
आप से भी बे-सबब दामन-कशाँ कोई न हो
ग़ज़ल
अब वहाँ चल कर रहें ऐ दिल जहाँ कोई न हो
अज़ीज़ वारसी