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अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है | शाही शायरी
ab us ka wasl mahnga chal raha hai

ग़ज़ल

अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है

ज़ुबैर अली ताबिश

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अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है
तो बस यादों पे ख़र्चा चल रहा है

मोहब्बत दो-क़दम पर थक गई थी
मगर ये हिज्र कितना चल रहा है

बहुत ही धीरे धीरे चल रहे हो
तुम्हारे ज़ेहन में क्या चल रहा है

बस इक ही दोस्त है दुनिया में अपना
मगर उस से भी झगड़ा चल रहा है

दिलों को तोड़ने का फ़न है तुम में
तुम्हारा काम कैसा चल रहा है

सभी यारों के मक़्ते हो चुके हैं
हमारा पहला मिस्रा चल रहा है

ये 'ताबिश' क्या है बस इक खोटा सिक्का
मगर ये खोटा सिक्का चल रहा है