अब तू ने गुल न गुल्सिताँ है याद
उसी मुखड़े की हर ज़माँ है याद
हम-नशीं कह ले क़िस्सा-ए-मजनूँ
हम को भी दिल की दास्ताँ है याद
ग़ुंचा काटे था जिस को देख के लब
क्यूँ सबा तुझ को वो वहाँ है याद
मुस्तक़िल मुर्ग़-ए-दिल जो तड़पे है
किस की सीने में पर-फ़िशाँ है याद
सबक़-ए-गिर्या अश्क को क्या दूँ
आप ही इस तिफ़्ल को रवाँ है याद
गुल से क्या मुख़्तलित हूँ ऐ बुलबुल
मुझ को वो आफ़त-ए-ख़िज़ाँ है याद
आह ऐ चर्ख़-ए-पीर, 'क़ाएम' नाम
याँ जो रहता था इक जवाँ है याद
ग़ज़ल
अब तू ने गुल न गुल्सिताँ है याद
क़ाएम चाँदपुरी