अब तो सोच लिया है यारो दिल का ख़ूँ हो जाने दूँ
जिन लोगों ने दर्द दिया है मैं उन को अफ़्साने दूँ
और ज़रा सी देर में थक कर सो जाएँगे तारे भी
कब तक घायल होंटों को मैं गीत बिरह के गाने दूँ
अपने जुनूँ का सीना छलनी होने दूँ मैं कब तक और
इतने सारे फ़रज़ाने हैं किस किस को समझाने दूँ
कब तक वो मल्हार की तानें क़ैद में रक्खें देखूँ तो
अब तो दीपक राग अलापूँ और ख़ुद को जल जाने दूँ
मैं मजबूर अकेला राही लेकिन राहबर इतने हैं
किस किस की अगवाही मानूँ किस किस को बहकाने दूँ
ग़ज़ल
अब तो सोच लिया है यारो दिल का ख़ूँ हो जाने दूँ
विश्वनाथ दर्द