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अब तो जिस रोज़ से रूठी है मोहब्बत उस की | शाही शायरी
ab to jis roz se ruThi hai mohabbat uski

ग़ज़ल

अब तो जिस रोज़ से रूठी है मोहब्बत उस की

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

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अब तो जिस रोज़ से रूठी है मोहब्बत उस की
बढ़ गई और भी पहले से ज़रूरत उस की

लौह-ए-हर-ज़ख़्म पे तहरीर है उस का मज़मून
नक़्श है हर वरक़-ए-दिल पे इबारत उस की

जिस्म तो मेरा था दिल उस का था जाँ उस की थी
मेरी जागीर थी चलती थी हुकूमत उस की

शोर-ए-फ़रियाद सुनाएँ तो सुनाएँ किस को
हश्र उस का है ख़ुदा उस का क़यामत उस की

देख कर 'आज़मी' उस को तो बड़ा रंज हुआ
वक़्त ने कैसी बदल डाली है सूरत उस की