अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
उस की तस्वीर है पानी में न रक्खी जाए
एक ही दिल में ठहर जाएँ हमेशा के लिए
ज़िंदगी नक़्ल-ए-मकानी में न रक्खी जाए
ज़िंदा रखना हो मोहब्बत में जो किरदार मिरा
साअत-ए-वस्ल कहानी में न रक्खी जाए
यूँ तो मिलते हैं सभी लोग बिछड़ने के लिए
ना-गहानी ये जवानी में न रक्खी जाए
भूल जाना है तो ऐ दोस्त भुला दे मुझ को
याद अब याद-दहानी में न रक्खी जाए
जब कोई एक कशिश खींच रही है हम को
कीमिया फ़ल्सफ़ा-दानी में न रक्खी जाए
दिल भी थोड़ा सा सुबुक-दोश-ए-तमन्ना कर दे
कुछ तबीअत भी गिरानी में न रक्खी जाए
ग़ज़ल
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
फ़ाज़िल जमीली