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अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए | शाही शायरी
ab to ashkon ki rawani mein na rakkhi jae

ग़ज़ल

अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए

फ़ाज़िल जमीली

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अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
उस की तस्वीर है पानी में न रक्खी जाए

एक ही दिल में ठहर जाएँ हमेशा के लिए
ज़िंदगी नक़्ल-ए-मकानी में न रक्खी जाए

ज़िंदा रखना हो मोहब्बत में जो किरदार मिरा
साअत-ए-वस्ल कहानी में न रक्खी जाए

यूँ तो मिलते हैं सभी लोग बिछड़ने के लिए
ना-गहानी ये जवानी में न रक्खी जाए

भूल जाना है तो ऐ दोस्त भुला दे मुझ को
याद अब याद-दहानी में न रक्खी जाए

जब कोई एक कशिश खींच रही है हम को
कीमिया फ़ल्सफ़ा-दानी में न रक्खी जाए

दिल भी थोड़ा सा सुबुक-दोश-ए-तमन्ना कर दे
कुछ तबीअत भी गिरानी में न रक्खी जाए