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अब तसव्वुर में हरम है न सनम-ख़ाना है | शाही शायरी
ab tasawwur mein haram hai na sanam-KHana hai

ग़ज़ल

अब तसव्वुर में हरम है न सनम-ख़ाना है

फ़ना बुलंदशहरी

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अब तसव्वुर में हरम है न सनम-ख़ाना है
मैं जहाँ पर हूँ वहीं यार का काशाना है

जुस्तुजू-ए-हरम-ओ-दैर से बेगाना है
मेरा दिल आप की तस्वीर का दीवाना है

अब न काबे में झुकेगा न सनम-ख़ाने में
मेरा सर सर नहीं संग-ए-दर-ए-जानाना है

सब तिरी मस्त-निगाही का करम है साक़ी
रिंद जो भी यहाँ होश से बेगाना है