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अब तलक हक़ नहिं पछाने वाह-वाह | शाही शायरी
ab talak haq nahin pacchane wah-wah

ग़ज़ल

अब तलक हक़ नहिं पछाने वाह-वाह

अलीमुल्लाह

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अब तलक हक़ नहिं पछाने वाह-वाह
जान को अपनी न जाने वाह-वाह

तुम जो करते हो फ़रज़ रोज़ा नमाज़
महज़ आलम को दिखाने वाह-वाह

मुफ़्त खोई उम्र दाने घांस में
फिर कहाते हो सियाने वाह-वाह

माल-ओ-ज़र फ़रज़ंद की रख कर तलब
हो रहे हक़ सूँ अघाने वाह-वाह

हक़ की ख़िल्क़त में मगर पैदा हुए
तुम महज़ खाने पकाने वाह-वाह

खोपड़ी उल्टी उंधी के हाथ सूँ
ऐँठ चलते हो उताने वाह-वाह

हैं यगाने अक़रबाँ ख़्वेशाँ सती
आप अपने सूँ बेगाने वाह-वाह

पूछते हैं सब नफ़ा नुक़सान को
सर दिए पैसा कमाने वाह-वाह

आशिक़ाँ को बोलते हैं ऐ 'अलीम'
ख़ल्क़ दुनिया के दिवाने वाह-वाह