अब तक तो सारे ग़म से मिरे बे-ख़बर मिले
बतलाऊँ हाल-ए-दिल जो कोई चारागर मिले
लम्हे हुसूल-ए-शौक़ के बस इस क़दर मिले
भटके हुए को राह में जैसे ख़िज़र मिले
उन के बग़ैर कर न सके ज़िंदगी ब-ख़ैर
रंज-ओ-अलम के साथ तो हम उम्र-भर मिले
दिल था कहीं लगा कहीं आँखें बिछी हुईं
ये सारे एहतिमाम तिरी राह पर मिले
करना है ताज़ा फिर मुझे अफ़्साना तूर का
ऐ काश मेरी उन की कहीं पर नज़र मिले
गुज़रे हैं अक़्ल-ओ-होश-ओ-ख़िरद की हुदूद से
हम हों कहीं तो तुम को हमारी ख़बर मिले
'राज़ी' झुके थे हुस्न-ए-चमन पर कि एक दिन
शीराज़े गुल के बिखरे हुए ख़ाक पर मिले
ग़ज़ल
अब तक तो सारे ग़म से मिरे बे-ख़बर मिले
ख़लील राज़ी