अब तक शरीक-ए-महफ़िल-ए-अग़्यार कौन है
हम बेवफ़ा हुए तो ख़ता-वार कौन है
याँ सब को मिल गए हैं सहारे ब-क़द्र-ए-शौक़
तुम सोचते रहे कि तलबगार कौन है
नज़रों ने किस की चाक किए पर्दा-हा-ए-रंग
सँवला दिया है जिस ने रुख़-ए-यार कौन है
दामन हज़ार चाक गरेबाँ हज़ार वा
ये देखना है कितना गुनाहगार कौन है
ग़ज़ल
अब तक शरीक-ए-महफ़िल-ए-अग़्यार कौन है
ज़ेहरा निगाह