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अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए | शाही शायरी
ab sochiye to dam-e-tamanna mein aa gae

ग़ज़ल

अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए

अहमद अज़ीम

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अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए
दीवार ओ दर को छोड़ के सहरा में आ गए

तस्वीर थे जो अव्वलीं सरशारियों में लोग
वो ज़ख़्म बन के चश्म-ए-तमन्ना में आ गए

उन से भी पूछिए कभी अपनी ज़मीं का कर्ब
जो साहिलों को छोड़ के दरिया में आ गए

वहशत ने यूँ तो ख़ूब दिया हर क़दम पे साथ
लेकिन तिरे फ़रेब-ए-दिल-आरा में आ गए

इस अंजुमन में अंजुम ओ ज़ोहरा भी थे मगर
हम शब-गुज़ीदा सेहर-ए-सुरय्या में आ गए