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अब शहर में अक़दार-कुशी एक हुनर है | शाही शायरी
ab shahr mein aqdar-kushi ek hunar hai

ग़ज़ल

अब शहर में अक़दार-कुशी एक हुनर है

अंजुम ख़लीक़

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अब शहर में अक़दार-कुशी एक हुनर है
फ़न जुर्म है मेआ'र-कुशी एक हुनर है

दुश्मन से तो क्या हक़-ए-अदावत का गिला जब
यारों के लिए यार-कुशी एक हुनर है

क्या क्या है नदामत उन्हें अब अपनी रविश पर
कहते थे जो किरदार-कुशी एक हुनर है

जिस दौर में हो लफ़्ज़ की हुरमत की तिजारत
उस दौर में अफ़्कार-कुशी एक हुनर है

ख़ातिर से जो करना पड़ी कज-फ़हम की ताईद
लगता था कि इंकार-कुशी एक हुनर है

हैरत है कि वो फ़न के परस्तार हैं 'अंजुम'
जिन के लिए फ़नकार-कुशी एक हुनर है