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अब रिश्तों में गहराई | शाही शायरी
ab rishton mein gahrai

ग़ज़ल

अब रिश्तों में गहराई

नीरज गोस्वामी

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अब रिश्तों में गहराई
बहते पानी पर काई

तुम कमरों में बंद रहे
धूप नहीं थी हरजाई

जब होंटों से छूते तुम
लगता मैं हूँ शहनाई

तुम से मिल कर देर तलक
अच्छी लगती तन्हाई

बच्चों से घर चहके यूँ
ज्यूँ कोयल से अमराई

तन्हा काली रातों की
उफ़ क्यूँ बढ़ती लम्बाई

बीती बात उधेड़ो मत
'नीरज' सीखो तुरपाई