अब रहे या न रहे कोई मलाल-ए-दुनिया
खींचती है मिरा दिल चश्म-ए-ग़ज़ाल-ए-दुनिया
लो उतरती है बदन से मिरे ख़ाकी पोशाक
लो हुआ जाता हूँ मैं सर्फ़-ए-कमाल-ए-दुनिया
मिट रहे हैं मिरे अंदर के सभी नक़्श-ओ-निगार
बन रहे हैं मिरे बाहर ख़द-ओ-ख़ाल-ए-दुनिया
तेरे चेहरे का फ़ुसूँ भी नज़र आए तो कहीं
कोई आईना दिखाता है जमाल-ए-दुनिया
बस यही नख़ल-ए-हवस है जो रहेगा सरसब्ज़
तिरा इक़बाल सिवा ताज़ा निहाल-ए-दुनिया
मैं भी हैरान मिरा दिल भी पशीमान सा है
जिस्म के हाथ हुआ जब से विसाल-ए-दुनिया
ग़ज़ल
अब रहे या न रहे कोई मलाल-ए-दुनिया
महताब हैदर नक़वी