अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले
जान पर खेल चुके जान से जाने वाले
ये न समझे थे कि ये दिन भी हैं आने वाले
उँगलियाँ हम पे उठाएँगे उठाने वाले
कौन समझाए न इठला के सर-ए-रह चलिए
हैं ये अंदाज़ गुनहगार बनाने वाले
पूछने तक को न आया कोई अल्लाह अल्लाह
थक गए पाँव की ज़ंजीर बजाने वाले
कहीं रोना न पड़े तुझ को ज़माने के साथ
अरे ओ वक़्त की झंकार पर गाने वाले
आप अंदाज़-ए-नज़र अपना बदलते ही नहीं
और बुरे बनते हैं बेचारे ज़माने वाले
पूछती है दर-ओ-दीवार से बीमार की आँख
अब कहाँ हैं वो मिरे नाज़ उठाने वाले
ब-ख़ुदा भूल गए अपनी मुसीबत 'बिस्मिल'
याद जब आए मोहम्मद के घराने वाले
ग़ज़ल
अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले
बिस्मिल अज़ीमाबादी