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अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले | शाही शायरी
ab raha kya hai jo ab aae hain aane wale

ग़ज़ल

अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले

बिस्मिल अज़ीमाबादी

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अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले
जान पर खेल चुके जान से जाने वाले

ये न समझे थे कि ये दिन भी हैं आने वाले
उँगलियाँ हम पे उठाएँगे उठाने वाले

कौन समझाए न इठला के सर-ए-रह चलिए
हैं ये अंदाज़ गुनहगार बनाने वाले

पूछने तक को न आया कोई अल्लाह अल्लाह
थक गए पाँव की ज़ंजीर बजाने वाले

कहीं रोना न पड़े तुझ को ज़माने के साथ
अरे ओ वक़्त की झंकार पर गाने वाले

आप अंदाज़-ए-नज़र अपना बदलते ही नहीं
और बुरे बनते हैं बेचारे ज़माने वाले

पूछती है दर-ओ-दीवार से बीमार की आँख
अब कहाँ हैं वो मिरे नाज़ उठाने वाले

ब-ख़ुदा भूल गए अपनी मुसीबत 'बिस्मिल'
याद जब आए मोहम्मद के घराने वाले