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अब रास्ते पे कोई रुकावट नहीं तिरे | शाही शायरी
ab raste pe koi rukawaT nahin tere

ग़ज़ल

अब रास्ते पे कोई रुकावट नहीं तिरे

महमूद इश्क़ी

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अब रास्ते पे कोई रुकावट नहीं तिरे
बोहतान की चटान को मैं ने हटा दिया

फ़िक्रों को चीरते हुए तेरे ख़याल ने
टूटे हुए बदन में नया दिल लगा दिया

महफ़िल में मस्लहत से जो बातें न कर सका
दानिशवरों ने उस को निशाना बना दिया

कूचे में यार लोगों का जब बढ़ गया हुजूम
उस ने भी एहतियात का पर्दा गिरा दिया

चाँदी से पाँव छोड़ गए गुनगुनाते नक़्श
पग पग पे जैसे दीप किसी ने जला दिया