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अब पसर आए हैं रिश्तों पे कुहासे कितने | शाही शायरी
ab pasar aae hain rishton pe kuhase kitne

ग़ज़ल

अब पसर आए हैं रिश्तों पे कुहासे कितने

नवनीत शर्मा

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अब पसर आए हैं रिश्तों पे कुहासे कितने
अब जो ग़ुर्बत में है नानी तो नवासे कितने

चोट खाए हुए लम्हों का सितम है कि उसे
रूह के चेहरे पे दिखते हैं मुहाँसे कितने

सच के क़स्बे पे मियाँ झूट की सरदारी है
अब अटकते हैं लबों पर ही ख़ुलासे कितने

थे बहुत ख़ास जो सर तान के चलते थे यहाँ
अब इसी शहर में वाक़िफ़ हैं अना से कितने

अब भी अंदर मिरे दिल है जो धड़कता है मियाँ
वर्ना बाज़ार में बिकते हैं दिलासे कितने

मोसला-धार बरसती मिरी आँखें सब चुप
उस की आँखों में नमी है तो हैं प्यासे कितने