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अब नींद कहाँ आँखों में शोला सा भरा है | शाही शायरी
ab nind kahan aaankhon mein shoala sa bhara hai

ग़ज़ल

अब नींद कहाँ आँखों में शोला सा भरा है

वकील अख़्तर

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अब नींद कहाँ आँखों में शोला सा भरा है
ये तपते हुए होंटों को तकने की सज़ा है

आशोब जहाँ-गुज़राँ ने ये किया है
इस दौर का हर फ़र्द-ओ-बशर आबला-पा है

ऐ शबनम-ए-गिर्यां तुझे इस का भी पता है
कलियों का तबस्सुम भी बहुत दर्द-नुमा है

हर अहल-ए-हवस ज़ीनत-ए-ख़ल्वत-कदा-ए-नाज़
हर अहल-ए-वफ़ा आज सर-ए-दार खड़ा है

इक नूर-ए-मुजस्सम के परस्तार हैं 'अख़्तर'
हम कह नहीं सकते हैं वो बुत है कि ख़ुदा है