अब न हसरत न पास है दिल में
कोई भी इस मकान में न रहा
क्या शिकायत जो कट गए गाहक
माल ही जब दुकान में न रहा
मर के रहना पड़ा अब उस में आह
जीते-जी जिस मकान में न रहा
'नादिर' अफ़्सोस क़दर-दान-ए-सुख़न
एक हिन्दोस्तान में न रहा
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ग़ज़ल
अब न हसरत न पास है दिल में
नादिर काकोरवी