अब न दे इल्ज़ाम बेदर्दी का मक्कारी न कर
तू ही ख़ुद को जाँच ले मुझ से अदाकारी न कर
तेरी आँखों से न बह निकले कहीं मेरा लहू
वार करना है तुझे तो इस क़दर कारी न कर
मानता हूँ मैं ने तेरे ज़ब्त को छेड़ा मगर
राह में यूँ देख कर इज़हार-ए-बे-ज़ारी न कर
वज़्अ'-दारी से अकेले उम्र कटती है कहीं
अपने हाथों ज़िंदगी को इस क़दर भारी न कर
रास्ता चल देख कर ये ख़ंजरों का शहर है
मुझ से चाहे कुछ भी कर ले ख़ुद से ग़द्दारी न कर
ग़ज़ल
अब न दे इल्ज़ाम बेदर्दी का मक्कारी न कर
इक़बाल अशहर कुरेशी