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अब क्या बताऊँ शहर ये कैसा लगा मुझे | शाही शायरी
ab kya bataun shahr ye kaisa laga mujhe

ग़ज़ल

अब क्या बताऊँ शहर ये कैसा लगा मुझे

फ़िरदौस गयावी

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अब क्या बताऊँ शहर ये कैसा लगा मुझे
हर शख़्स अपने ख़ून का प्यासा लगा मुझे

ख़फ़्गी हो या जफ़ाएँ हों या मेहरबानियाँ
हर रंग चश्म-ए-नाज़ का अच्छा लगा मुझे

देखा जो ग़ौर से तो वो झोंका हवा का था
तुम ख़ुद ही छम से आई हो ऐसा लगा मुझे

वो शख़्स जिस से पहले कभी आश्ना न था
नज़दीक से जो देखा तो अपना लगा मुझे

यूँ भी मिलेगी मंज़िल-ए-जानाँ यक़ीं न था
वो सामने थे फिर भी इक सपना लगा मुझे