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अब कोई ग़म-गुसार हमारा नहीं रहा | शाही शायरी
ab koi gham-gusar hamara nahin raha

ग़ज़ल

अब कोई ग़म-गुसार हमारा नहीं रहा

दिल शाहजहाँपुरी

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अब कोई ग़म-गुसार हमारा नहीं रहा
दुनिया को ए'तिबार हमारा नहीं रहा

इस फ़र्त-ए-ग़म में ख़ून के आँसू टपक पड़े
अब दिल भी राज़दार हमारा नहीं रहा

उस की हुज़ूर पीर-ए-मुग़ाँ में है मंज़िलत
जो अहद-ए-पाएदार हमारा नहीं रहा

हर दाग़ उभर के ज़ख़्म बना ज़ख़्म रश्क-ए-गुल
दिल माइल-ए-बहार हमारा नहीं रहा

ये है मआल-ए-सोहबत-ए-ज़ाहिद जनाब-ए-दिल
रिंदों में अब शुमार हमारा नहीं रहा