अब किसे यारा है ज़ब्त-ए-नाला-ए-ओ-फ़र्याद का
भर गया है ग़म से पैमाना दिल-ए-नाशाद का
जल रहा था आशियाना बस न था करते ही क्या
दूर से देखा किए हम ये सितम सय्याद का
क़ल्ब-ए-सोज़ाँ मिट के भी हंगामा-आरा ही रहा
बन गया बिजली हर इक ज़र्रा दिल-ए-नाशाद का
मौसम-ए-गुल की हवा आई न जिस को साज़-वार
दिल है वो पज़मुर्दा ग़ुंचा आलम-ए-ईजाद का
या तो अब आठों-पहर पेश-ए-नज़र हो या कभी
दिल दहल जाता था सुन कर नाम भी सय्याद का
आया क़िस्मत से उसी दिन मुझ को पैग़ाम-ए-अजल
रोज़-ए-आख़िर था जो मेरी क़ैद की मीआ'द का
देख इबरत की नज़र से ग़म के दाग़ों की बहार
सफ़ा-ए-दिल है मुरक़्क़ा' गुलशन-ए-ईजाद का
देखिए होता है क्यूँ कर आज तय ये मरहला
मैं इधर हूँ सख़्त-जाँ ख़ंजर इधर फ़ौलाद का
सहन-ए-गुलशन से क़फ़स में आ गया वो मुश्त-ए-पर
हो गया गुलज़ार जिस के दम से घर सय्याद का
संग-ए-दिल रोते हैं 'शो'ला' सुन के फ़रियादें मिरी
मोम हो जाता है आहों से जिगर फ़ौलाद का

ग़ज़ल
अब किसे यारा है ज़ब्त-ए-नाला-ए-ओ-फ़र्याद का
शोला करारवी