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अब किस की जुस्तुजू हो तिरी जुस्तुजू के बा'द | शाही शायरी
ab kis ki justuju ho teri justuju ke baad

ग़ज़ल

अब किस की जुस्तुजू हो तिरी जुस्तुजू के बा'द

हक़ीर जहानी

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अब किस की जुस्तुजू हो तिरी जुस्तुजू के बा'द
जचता नहीं है कोई तिरी आरज़ू के बा'द

तर्क-ए-वफ़ा के बा'द है तजदीद-ए-इल्तिफ़ात
मिस्ल-ए-लिबास-ए-कोहना जो पहना रफ़ू के बा'द

करते हैं बहकी बहकी सी बातें जनाब-ए-शैख़
आते हैं आप होश में सर्फ़-ए-सुबू के बा'द

लाज़िम नहीं कि जंग-ओ-जदल से ही काम लें
हो जाए मसअलों का जो हल गुफ़्तुगू के बा'द

दिल अपना ही रक़ीब यूँ होने लगा 'हक़ीर'
कोई शक़ी कभी न रहा उस अदू के बा'द