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अब ख़यालों का जहाँ और न आबाद करें | शाही शायरी
ab KHayalon ka jahan aur na aabaad karen

ग़ज़ल

अब ख़यालों का जहाँ और न आबाद करें

सलमा शाहीन

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अब ख़यालों का जहाँ और न आबाद करें
ख़्वाब जो भूल चुके हैं उन्हें बस याद करें

थपकी दे दे के सुलाने की है आदत दिल को
अब किसी और से क्यूँ ख़ुद ही से फ़रियाद करें

कितने मौसम के छलावे से गुज़र कर पहुँची
उस डगर पे कि जहाँ लोग मुझे याद करें

हम भी अब फ़िक्र-ए-जहाँ छोड़ के जी भर हंस लें
वक़्त इतना भी कहाँ है जिसे बर्बाद करें

ज़िंदगी यूँ ही मुनज़्ज़म रहे ऐसा भी नहीं
हम नई तर्ज़ कोई और भी ईजाद करें

देने वाले की मशिय्यत थी जो वहशत दे दी
दिल-ए-वीराँ जो मिला है उसे आबाद करें

दिल के टूटे हुए टुकड़ों को न जोड़ें 'शाहीन'
दिल पे जो गुज़री उसे भूल के मत याद करें