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अब जुनूँ के रत-जगे ख़िरद में आ गए | शाही शायरी
ab junun ke rat-jage KHirad mein aa gae

ग़ज़ल

अब जुनूँ के रत-जगे ख़िरद में आ गए

ऐनुद्दीन आज़िम

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अब जुनूँ के रत-जगे ख़िरद में आ गए
सारे ख़्वाब रौशनी की ज़द में आ गए

लोग पा गए हक़ीक़तें क़यास में
हम यक़ीन से गुमाँ की हद में आ गए

इल्म के मुराक़बे हैं ग़ैर-मुस्तनद
जेहल के मुनाज़रे सनद में आ गए

लफ़्ज़-ए-फ़त्ह के जो तर्जुमान थे कभी
क्यूँ सिमट के हर्फ़-ए-अल-मदद में आ गए

इक पनाह क्या मली कि हुस्न-ओ-इश्क़ के
सब गुनाह नेकियों की मद में आ गए

दल की तह में 'आज़िम' उन की याद रह गई
ग़म उभर के मेरे ख़ाल-ओ-ख़द में आ गए