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अब जी रहा हूँ गर्दिश-ए-दौराँ के साथ साथ | शाही शायरी
ab ji raha hun gardish-e-dauran ke sath sath

ग़ज़ल

अब जी रहा हूँ गर्दिश-ए-दौराँ के साथ साथ

शोरिश काश्मीरी

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अब जी रहा हूँ गर्दिश-ए-दौराँ के साथ साथ
ये नागवार फ़र्ज़ अदा कर रहा हूँ मैं

ऐ रब्ब-ए-ज़ुल-जलाल तिरी बरतरी की ख़ैर
अब ज़ालिमों की मद्ह-ओ-सना कर रहा हूँ मैं

'शोरिश' मिरी नवा से ख़फ़ा है फ़क़ीह-ए-शहर
लेकिन जो कर रहा हूँ बजा कर रहा हूँ मैं