अब इश्क़ से लौ लगाएँगे हम
अब दिल के भी काम आएँगे हम
जब झुटपुटा होगा शाम-ए-ग़म का
पलकों पे दिए जलाएँगे हम
हम बन गए हैं अदा तुम्हारी
छेड़ोगे तो रूठ जाएँगे हम
ऐ मूनिस-ए-दिल ऐ हिज्र की रात
ले चल दिए अब न आएँगे हम
क्या बैठे-बिठाए हो गया है
पूछेंगे तो क्या बताएँगे हम
वो आँख बड़ी जहाँ-नुमा है
उस आँख से क्या छुपाएँगे हम
सहरा तो 'ज़हीर' तंग निकला
अब देखें किधर को जाएँगे हम
ग़ज़ल
अब इश्क़ से लौ लगाएँगे हम
ज़हीर काश्मीरी