अब एक दर्द भी दिल में नज़र नहीं आता
किसी के काम कोई उम्र-भर नहीं आता
ये दिल भी दोस्त फ़रामोश कम नहीं तुझ से
कि मुद्दतों नहीं आता जिधर नहीं आता
न सोएँ दिन को वो रातों को जागते हैं ज़रूर
नहीं तो आँख में इतना असर नहीं आता
उन्हीं की बात हैं जो मैं ने याद कर ली हैं
मगर वो उन की ज़बाँ का असर नहीं आता
मुराक़बे में है क्या क्या मुशाहिदा ऐ शैख़
बग़ैर उस के नज़र में असर नहीं आता
अदम के नाम से हर एक क्यूँ रहे बश्शाश
हर एक शख़्स को लुत्फ़-ए-सफ़र नहीं आता
इलाज और मरज़ में न थी कोई निस्बत
हमारे सामने अब चारागर नहीं आता
घुटी ही जाती हैं हर रोज़ क़ुव्वतें दिल की
मैं उस के सदक़े जो अरमान बर नहीं आता
दुआ के ढंग ही अहबाब को नहीं आते
ग़लत है ये कि दुआ में असर नहीं आता
वो दर्द मोल कि हो रात-दिन की नींद हराम
तो देख आह में कैसा असर नहीं आता
उसी ने कह दिया अच्छा हुआ कि वो क्या है
मिरी समझ में तो ये उम्र-भर नहीं आता
'सफ़ी' को शाइ'री आती है वो भी कुछ यूँ ही
उसे बस और तो कोई हुनर नहीं आता

ग़ज़ल
अब एक दर्द भी दिल में नज़र नहीं आता
सफ़ी औरंगाबादी