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अब भी पल पल जी दुखता है | शाही शायरी
ab bhi pal pal ji dukhta hai

ग़ज़ल

अब भी पल पल जी दुखता है

कुमार पाशी

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अब भी पल पल जी दुखता है
जैसे सब कुछ अभी हुआ है

कभी न फिर मिलना हो जैसे
आज वो मुझ से यूँ बछड़ा है

बादल तो खुल कर बरसा था
फिर भी सारा दिन जलता है

हम भी कभी ख़ुश हो लेते थे
आज अचानक याद आया है

सावन हो पतझड़ हो कि गुल-रुत
दिल हर मौसम में तन्हा है

बदन बदन ख़ुश्बू फैली है
घुँघट घुँघट फूल खिला है

मैं हूँ मोर घने जंगल का
तू काली घनघोर घटा है

मैं इक दुख से भरी कहानी
तू मीठा सुंदर सपना है

'पाशी' किस की मदह में तुम ने
आज इतना कुछ कह डाला है