अब भी अक्सर ध्यान तुम्हारा आता है
देखो गुज़रा वक़्त दोबारा आता है
आह नहीं आती है अब तो होंटों तक
सीने से बस इक अँगारा आता है
जाने किस दुनिया में सोती जागती हैं
जिन आँखों से ख़्वाब हमारा आता है
दिन भर जंगल की आवाज़ें आती हैं
रात को घर में जंगल सारा आता है
जिन रातों में चाँद हो या फिर चाँद न हो
याद बहुत उस का रुख़्सारा आता है
ग़ज़ल
अब भी अक्सर ध्यान तुम्हारा आता है
अकबर मासूम