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अब भी अक्सर ध्यान तुम्हारा आता है | शाही शायरी
ab bhi aksar dhyan tumhaara aata hai

ग़ज़ल

अब भी अक्सर ध्यान तुम्हारा आता है

अकबर मासूम

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अब भी अक्सर ध्यान तुम्हारा आता है
देखो गुज़रा वक़्त दोबारा आता है

आह नहीं आती है अब तो होंटों तक
सीने से बस इक अँगारा आता है

जाने किस दुनिया में सोती जागती हैं
जिन आँखों से ख़्वाब हमारा आता है

दिन भर जंगल की आवाज़ें आती हैं
रात को घर में जंगल सारा आता है

जिन रातों में चाँद हो या फिर चाँद न हो
याद बहुत उस का रुख़्सारा आता है