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अब असीरी की ये तदबीर हुई जाती है | शाही शायरी
ab asiri ki ye tadbir hui jati hai

ग़ज़ल

अब असीरी की ये तदबीर हुई जाती है

अंबरीन हसीब अंबर

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अब असीरी की ये तदबीर हुई जाती है
एक ख़ुश्बू मिरी ज़ंजीर हुई जाती है

इक हसीं ख़्वाब कि आँखों से निकलता ही नहीं
एक वहशत है कि ता'बीर हुई जाती है

उस की पोशाक निगाहों का अजब है ये फ़ुसूँ
ख़ुश-बयानी मिरी तस्वीर हुई जाती है

अब वो दीदार मयस्सर है न क़ुर्बत न सुख़न
इक जुदाई है जो तक़दीर हुई जाती है

उन को अशआ'र न समझें कहीं दुनिया वाले
ये तो हसरत है जो तहरीर हुई जाती है